kashmkash
लबों का रंग आँखों की ख़ुमारी महँगी पड़ती है
कोई ले भी तो क्या हर शय तुम्हारी महँगी पड़ती है ?
किसी चहरे को इतना ख़ूबसूरत मत बनाया कर
ये हम जैसों को तेरी दस्तकारी महँगी पड़ती है
जुदा होने का कोई और ग़म तो है नहीं लेकिन
बस उसके बाद की ये बे-क़रारी महँगी पड़ती है
न तेरे हो सके हम कुछ, बहुत होने की चाहत में
हमें ये प्यार की बे-रोज़गारी महँगी पड़ती है